Sunday, January 13, 2019

 भारत में हैं कुल 26 तरह के नागरिक || There are 26 types of citizens in India



 भारत में हैं कुल 26 तरह के नागरिक

 भारत में हैं कुल 26 तरह के नागरिक, का पहला नागरिक राष्ट्रपति होते हैं, ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि दूसरा, तीसरा और चौथा नागरिक कौन होते है? हम आपको बताते हैं, भारतीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत में कुल 26 तरह के नागरिक होते हैं। दूसरे नंबर पर देश का उप राष्ट्रपति होता है। वहीं तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री और चौथे नंबर पर सभी राज्यों के राज्यपाल होते हैं। इन्हें वरीयता सूची में नाम दिया गया है।


भारत का 'पहला' नागरिक– देश का राष्ट्रपति

दूसरा नागरिक– देश का उप राष्ट्रपति

तीसरा नागरिक– प्रधानमंत्री

चौथा नागरिक–राज्यपाल (संबंधित राज्यों के सभी)

पाँचवाँ नागरिक–देश के पूर्व राष्ट्रपति,
पाँचवाँ (A)– देश का उप प्रधानमंत्री

छठा नागरिक–भारत का मुख्य न्यायधीश, लोकसभा का अध्यक्ष

सातवाँ नागरिक– केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री (संबंधित सभी राज्यों के), योजना आयोग के उपाध्यक्ष (वर्तमान ने नीति आयोग), पूर्व प्रधानमंत्री, राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष का नेता,
सातवाँ (A)–भारत रत्न पुरस्कार विजेता

आठवाँ नागरिक
– भारत में मान्यता प्राप्त राजदूत, मुख्यमंत्री (संबंधित राज्यों से बाहर के) गवर्नर्स (अपने संबंधित राज्यों से बाहर के)

नौवाँ नागरिक
– सुप्रीम कोर्ट के जज, 9th A– यूनियन पब्लिक सर्सिस कमिशन (यूपीएससी) के चेयरपर्सन, चीफ इलेक्शन कमिशनर, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक

दसवाँ नागरिक
–राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन, डिप्टी चीफ मिनिस्टर्स, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर, योजना आयोग के सदस्य (वर्तमान में नीति आयोग), राज्यों के मंत्री (सुरक्षा से जुड़े मंत्रालयों के अन्य मंत्री)

ग्यारहवाँ नागरिक–अटार्नी जनरल (एजी), कैबिनेट सचिव, उप राज्यपाल (केंद्र शासित प्रदेशों के भी शामिल)

बाहरवाँ नागरिक
– पूर्ण जनरल या समकक्ष रैंक वाले कर्मचारियों के चीफ

तेरहवाँ नागरिक
– राजदूत ,असाधारण और पूर्ण नियोक्ता जो कि भारत में मान्यता प्राप्त हैं

चौदहवाँ नागरिक
– राज्यों के चेयरमैन और राज्य विधानसभा के स्पीकर (सभी राज्य शामिल), हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस (सभी राज्यों की पीठ के जज शामिल)

पंद्रहवाँ नागरिक–राज्यों के कैबिनेट मिनिस्टर्स (सभी राज्यों के शामिल), केंद्र शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी काउंसिलर (सभी केंद्र शासित राज्य) केंद्र के उपमंत्री

सोलहवाँ नागरिक–लेफ्टिनेंट जनरल या समकक्ष रैंक का पद धारण करने वाले स्टाफ के प्रमुख अधिकारी

सत्रहवाँ नागरिक– अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश (उनके संबंधित न्यायालय के बाहर), उच्च न्यायालयों के पीयूज न्यायाधीश (उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में)

अट्ठारहवाँ नागरिक–राज्यों (उनके संबंधित राज्यों के बाहर) में कैबिनेट मंत्री, राज्य विधान मंडलों के सभापति और अध्यक्ष (उनके संबंधित राज्यों के बाहर), एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग के अध्यक्ष, उप अध्यक्ष और राज्य विधान मंडलों के उपाध्यक्ष (उनके संबंधित राज्यों में), मंत्री राज्य सरकारों (राज्यों में उनके संबंधित राज्यों), केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्री और कार्यकारी परिषद, दिल्ली (उनके संबंधित संघ शासित प्रदेशों के भीतर) संघ शासित प्रदेशों में विधान सभा के अध्यक्ष और दिल्ली महानगर परिषद के अध्यक्ष, उनके संबंधित केंद्र शासित प्रदेशों में।

उन्नीसवाँ नागरिक–संघ शासित प्रदेशों के मुख्य आयुक्त, उनके संबंधित केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यों के उपमंत्री (उनके संबंधित राज्यों में), केंद्र शासित प्रदेशों में विधान सभा के उपाध्यक्ष और मेट्रोपॉलिटन परिषद दिल्ली के उपाध्यक्ष

बीसवाँ नागरिक
– राज्य विधानसभा के चेयरमैन और डिप्टी चेयरमैन (उनके संबंधित राज्यों के बाहर)

इक्कीसवाँ नागरिक– सांसद सदस्य

बाइसवाँ नागरिक
– राज्यों के डिप्टी मिनिस्टर्स (उनके संबंधित राज्यों के बाहर)

तेइसवाँ नागरिक–आर्मी कमांडर, वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और इन्हीं की रैंक के बराबर के अधिकारी, राज्य सरकारों के मुख्य सचिव, (उनके संबंधित राज्यों के बाहर), भाषाई अल्पसंख्यकों के आयुक्त, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य, अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य, अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य

चौबीसवाँ नागरिक–उप राज्यपाल रैंक के अधिकारी या इन्हीं के समक्ष अधिकारी

पच्चीसवाँ नागरिक–भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव

छब्बीसवाँ नागरिक
– भारत सरकार के संयुक्त सचिव और समकक्ष रैंक के अधिकारी, मेजर जनरल या समकक्ष रैंक के रैंक के अधिकारी

Thursday, December 6, 2018

भारतीय संविधान के विकास का इतिहास(1773-1947)



भारतीय संविधान के विकास का इतिहास(1773-1947)
प्रस्तावना

1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा. इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं. वे निम्न हैं:

1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट

इस एक्ट का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है जैसे —

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था |अर्थात कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया |इस एक्ट के द्वारा पहली बार कंपनी के राजनैतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता मिली |इसके द्वारा केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई |

इस एक्ट की विशेषताएं

इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पड़ नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद् का गठन किया गया | बंगाल के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे |इसके द्वारा बम्बई एवं मद्रास के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गए |अधिनियम के अन्तर्गत कलकत्ता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई ,जिसमे मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे|इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया |इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ़ डयरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया | अब कंपनी को भारत में इसके राजस्व नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया

1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट:

रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने के लिये इस एक्ट को पारित किया गया। इस एक्ट से संबंधित विधेयक ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री पिट द यंगर ने संसद में प्रस्तुत किया तथा 1784 में ब्रिटिश संसद ने इसे पारित कर दिया।

इस एक्ट के प्रमुख उपबंध निम्नानुसार थे-

इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को पृथक पृथक कर दिया |इसने निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलों की अनुमति तो दी लेकिन राजनैतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल )नाम से एक नए निकाय का गठन कर दिया | इस प्रकार द्वैध शासन व्यवस्था का शुरुआत किया गया |नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी की वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में सभी नागरिक , सैन्य सरकार व राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण व नियंत्रण करे |

इस प्रकार यह अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था – पहला भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्रों को पहली बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया व दूसरा ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया |



1793 ई. का चार्टर अधिनियम:

इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गई.

1813 ई. का चार्टर अधिनियम:
अधिनियम की विशेषताएं

कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया.कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया. लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा.कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया.

1833 ई. का चार्टर अधिनियम:
ब्रिटिश भारत के केन्द्रीयकरण की दिशा में यह अधिनियम निर्णायक कदम था |

अधिनियम की विशेषताएं

कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए.अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया.बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा.जिसमे सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित थी |इस प्रकार इस अधिनियम में एक ऐसी सरकार का निर्माण किया जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले संपूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण हो | लार्ड विलिअम बैंटिक भारत के पहले गवर्नर जनरल थे |इसने मद्रास और बम्बई के गवर्नरों को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया |भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका के असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए | इसके अन्तर्गत पहले बनाए गए कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा गया |भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.

1853 ई. का चार्टर अधिनियम:

अधिनियम की विशेषताएं

इसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद् के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया |इसके तहत परिषद् में 6 नए पार्षद और जोड़े गए ,इन्हें विधान पार्षद कहा गया |इसने सिविल सेवाओं की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगता व्यवस्था का शुभारम्भ किया ,और पहली बार सिविल सेवा को भारतीयों के लिए खोल दिया गया और इसके लिए 1854 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई |इसने पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद् में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रदान किया |गवर्नर जनरल की परिषद् में 6 नए सदस्यों में से 4 का चुनाव बंगाल , मद्रास , बम्बई और आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाना था |

1858 ई. का चार्टर अधिनियम:

1857 के विद्रोह ने कंपनी की, जटिल परिस्थितियों में प्रशासन की सीमाओं को स्पष्ट कर दिया था। इसके पश्चात कंपनी से प्रशासन का दायित्व वापस लेने तथा ताज (crown) द्वारा भारत का प्रशासन प्रत्यक्ष रूप से संभालने की मांग और तेज हो गयी। इसीलिये यह अधिनियम पारित किया गया।

अधिनियम की विशेषताएं

भारत का शासन ब्रिटेन की संसद को दे दिया गया।अब भारत का शासन, ब्रिटिश साम्राज्ञी की ओर से भारत राज्य सचिव (secretary of state for India) को चलाना था जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद (India council) का गठन किया गया। अब भारत के शासन से संबंधित सभी कानूनों एवं कदमों पर भारत सचिव की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गयी जबकि भारत परिषद केवल सलाहकारी प्रकृति की थी। (इस प्रकार पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा प्रारंभ की गयी द्वैध शासन की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी)।डायरेक्टरों की सभा (Court of Directors) और नियंत्रण बोर्ड या अधिकार सभा (Board of Control) समाप्त कर दिये गये तथा उनके समस्त अधिकार भारत सचिव को दे दिये गये।भारत परिषद के 15 सदस्यों में से 7 सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार सम्राट तथा शेष सदस्यों के चयन का अधिकार कंपनी के डायरेक्टरों को दे दिया गया।अखिल भारतीय सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध मसलों पर भारत सचिव, भारत परिषद की राय मानने को बाध्य था।भारत के गवर्नर-जनरल को भारत सचिव की आज्ञा के अनुसार कार्य करने के लिये बाध्य कर दिया गया।अब गवर्नर-जनरल, भारत में ताज के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। तथा उसे ‘वायसराय’ की उपाधि दी गयी।संरक्षण-ताज, सपरिषद राज्य सचिव तथा भारतीय अधिकारियों में बंट गया।अनुबद्ध सिविल सेवा (covenanted civil service) में नियुक्तियां खुली प्रतियोगिता द्वारा की जाने लगीं।भारत राज्य सचिव एक निगम निकाय (Corporate Body) घोषित किया गया, जिस पर इंग्लैंड एवं भारत में दावा किया जा सकता था अथवा जो दावा दायर कर सकता था।



1861 ई. का भारत परिषद् अधिनियम:

अधिनियम की विशेषताएं

गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया,विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ,गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई.इस अधिनियम में मद्रास और बम्बई प्रेसीडेन्सियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया की शुरुआत की |इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत की |गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.

1892 ई. का भारत शासन अधिनियम:
अधिनियम की विशेषताएं

इसके माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त (गैर सरकारी ) सदस्यों की संख्या बधाई गई |इसने विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि कर उन्हें बजट पर बहस करने और कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकृत किया |इसने केंद्रीय विधान परिषद् और बंगाल चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स में गैर सरकारी सदस्यों के नामांकन के लिए वायसराय की शक्तियों का प्रावधान था |

1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले -मिंटो सुधार] –
अधिनियम की विशेषताएं

इसने केंद्रीय और प्रांतीय विधानपरिषदों के आकर में काफी वृद्धि की | केंद्रीय परिषद् में इनकी संख्या 16 से ६० हो गई |प्रांतीय विधानपरिषदों में इनकी संख्यां एक सामान नही थी |इसने केंद्रीय परिषद् में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रन्त्येन परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी |इसने दोनों स्तरों पर विधान परिषद् के चर्चा कार्यों का दायर बढ़ाया , जैसे अनुपूरक प्रश्न पूछना , बजट पर संकल्प रखना आदि |इस अधिनियम के अन्तर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया |सतेन्द्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने | उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था |इस अधिनियम में पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया | इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते है |इस प्रकार इस अधिनियम ने साम्प्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की |इसने प्रेसीडेंसी कारपोरेशन , चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स , विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी किया |

1919 ई० का भारत शासन अधिनियम [मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार] –

अधिनियम की विशेषताएं

केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषदतथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था. केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा41 मनोनीत होते थे. इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था. दोनों सदनों के अधिकार समान थे. इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था.प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया. इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित. आरक्षित विषय थे – वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियां, छापाखाना, समाचार पत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालर, श्रमिक कल्याण, औघोगिक विवाद, मोटरगाड़ियां, छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि.हस्तांतरित विषय -शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता. सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उघोग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि.आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था.इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों , भारतीय ईसाईयों , आंग्ल भारतीयों और यूरोपियो के लिए पृथक निर्वाचन के सिद्धान्त को विस्तरित किया |इस कानून ने संपत्ति , कर या शिक्षा के आधार पर सिमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया |इस कानून ने लन्दन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया और अब तक भारत सचिव द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यों को उच्चायुक्त को स्थानांतरित कर दिया गया |इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधान सभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत किया |भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है.इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया.द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया.



1935 ई० का भारत शासन अधिनियम:
1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे. इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया.प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया.केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था.संघीय न्यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी.ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों – भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया.इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था.इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया.

1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम:

ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया. इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं. अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –

दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी. सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा.भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी.संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं.भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें.1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा.देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया. उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई.


Saturday, November 17, 2018

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 Indian Constitution Articles
 

अनुच्छेद 1 :- संघ कानाम और राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद 2 :- नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
अनुच्छेद 3 :- राज्य का निर्माण तथा सीमाओं या नामों मे
परिवर्तन
अनुच्छेद 4 :- पहली अनुसूचित व चौथी अनुसूची के संशोधन तथा दो और तीन के अधीन बनाई गई विधियां
अच्नुछेद 5 :- संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
अनुच्छेद 6 :- भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता
अनुच्छेद 7 :-पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता
अनुच्छेद 8 :- भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों का नागरिकता
अनुच्छेद 9 :- विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर नागरिकता का ना होना
अनुच्छेद 10 :- नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
अनुच्छेद 11 :- संसद द्वारा नागरिकता के लिए कानून का विनियमन
अनुच्छेद 12 :- राज्य की परिभाषा
अनुच्छेद 13 :- मूल अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाली विधियां
अनुच्छेद 14 :- विधि के समक्ष समानता
अनुच्छेद 15 :- धर्म जाति लिंग पर भेद का प्रतिशेध
अनुच्छेद 16 :- लोक नियोजन में अवसर की समानता
अनुच्छेद 17 :- अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 18 :- उपाधीयों का अंत
अनुच्छेद 19 :- वाक् की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 20 :- अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण

अनुच्छेद 21 :-प्राण और दैहिक स्वतंत्रता
अनुच्छेद 21 क :- 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 22 :- कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से सरंक्षण
अनुच्छेद 23 :- मानव के दुर्व्यापार और बाल आश्रम
अनुच्छेद 24 :- कारखानों में बालक का नियोजन का प्रतिशत
अनुच्छेद 25 :- धर्म का आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 26 :-धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 29 :- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
अनुच्छेद 30 :- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
अनुच्छेद 32 :- अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
अनुच्छेद 36 :- परिभाषा
अनुच्छेद 40 :- ग्राम पंचायतों का संगठन
अनुच्छेद 48 :- कृषि और पशुपालन संगठन
अनुच्छेद 48क :- पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
अनुच्छेद 49:- राष्ट्रीय स्मारक स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
अनुछेद. 50 :- कार्यपालिका से न्यायपालिका का प्रथक्करण
अनुच्छेद 51 :- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
अनुच्छेद 51क :- मूल कर्तव्य
अनुच्छेद 52 :- भारत का राष्ट्रपति
अनुच्छेद 53 :- संघ की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 54 :- राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 55 :- राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीती
अनुच्छेद 56 :- राष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 57 :- पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
अनुच्छेद 58 :- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताए
अनुच्छेद 59 :- राष्ट्रपति पद के लिए शर्ते
अनुच्छेद 60 :- राष्ट्रपति की शपथ
अनुच्छेद 61 :- राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
अनुच्छेद 62 :- राष्ट्रपति पद पर व्यक्ति को भरने के लिए निर्वाचन का समय और रीतियां
अनुच्छेद 63 :- भारत का उपराष्ट्रपति
अनुच्छेद 64 :- उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
अनुच्छेद 65 :- राष्ट्रपति के पद की रिक्त पर उप राष्ट्रपति के कार्य
अनुच्छेद 66 :- उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 67 :- उपराष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 68 :- उप राष्ट्रपति के पद की रिक्त पद भरने के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद69 :- उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ

अनुच्छेद 70 :- अन्य आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
अनुच्छेद 71. :- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित
विषय
अनुच्छेद 72 :-क्षमादान की शक्ति
अनुच्छेद 73 :- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
अनुच्छेद 74 :- राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
अनुच्छेद 75 :- मंत्रियों के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 76 :- भारत का महान्यायवादी
अनुच्छेद 77 :- भारत सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 78 :- राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमंत्री के
कर्तव्य
अनुच्छेद 79 :- संसद का गठन
अनुच्छेद 80 :- राज्य सभा की सरंचना

अनुच्छेद 81 :- लोकसभा की संरचना
अनुच्छेद 83 :- संसद के सदनो की अवधि
अनुच्छेद 84 :-संसद के सदस्यों के लिए अहर्ता
अनुच्छेद 85 :- संसद का सत्र सत्रावसान और विघटन
अनुच्छेद 87 :- राष्ट्रपति का विशेष अभी भाषण
अनुच्छेद 88 :- सदनों के बारे में मंत्रियों और महानयायवादी
अधिकार
अनुच्छेद
89 :-राज्यसभा का सभापति और उपसभापति

अनुच्छेद 90 :- उपसभापति का पद रिक्त होना या पद हटाया
जाना
अनुच्छेद 91 :-सभापति के कर्तव्यों का पालन और शक्ति
अनुच्छेद 92 :- सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का
संकल्प विचाराधीन हो तब उसका पीठासीन ना होना
अनुच्छेद 93 :- लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
अनुचि

94 :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना
अनुच्छेद 95 :- अध्यक्ष में कर्तव्य एवं शक्तियां
अनुच्छेद 96 :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प हो तब
उसका पीठासीन ना होना
अनुच्छेद 97 :- सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष,उपाध्यक्ष के
वेतन और भत्ते
अनुच्छेद 98 :- संसद का सविचालय
अनुच्छेद 99 :- सदस्य द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 100 - संसाधनों में मतदान रिक्तियां के होते हुए भी
सदनों के कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
अनुच्छेद 108 :- कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
अनुत्छेद 109 :- धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया
अनुच्छेद 110 :- धन विधायक की परिभाषा
अनुच्छेद 111 :- विधेयकों पर अनुमति
अनुच्छेद 112 :- वार्षिक वित्तीय विवरण
अनुच्छेद 118 :- प्रक्रिया के नियम
अनुच्छेद 120 :- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
अनुच्छेद 123 :- संसद विश्रांति काल में राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति
अनुच्छेद 124 :- उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
अनुच्छेद 125 :- न्यायाधीशों का वेतन
अनुच्छेद 126 :- कार्य कार्य मुख्य न्याय मूर्ति की नियुक्ति
अनुच्छेद 127 :- तदर्थ न्यायमूर्तियों की नियुक्ति
अनुच्छेद 128 :- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
अनुच्छेद 129 :- उच्चतम न्यायालय का अभिलेख नयायालय होना
अनुच्छेद 130 :- उच्चतम न्यायालय का स्थान

अनुच्छेद 131 :- उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
अनुच्छेद 137 :- निर्णय एवं आदेशों का पुनर्विलोकन
अनुच्छेद 143 :- उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की
राष्ट्रपति की शक्ति
अनुच्छेद144 :-सिविल एवं न्यायिक पदाधिकारियों द्वारा
उच्चतम न्यायालय की सहायता
अनुच्छेद 148 :- भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक
अनुच्छेद 149 :- नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्य शक्तिया
अनुच्छेद 150 :- संघ के राज्यों के लेखन का प्रारूप
अनुच्छेद 153 :- राज्यों के राज्यपाल
अनुच्छेद 154 :- राज्य की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 155 :- राज्यपाल की नियुक्ति
अनुच्छेद 156 :- राज्यपाल की पदावधि
अनुच्छेद 157 :- राज्यपाल नियुक्त होने की अर्हताएँ
अनुच्छेद 158 :- राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
अनुच्छेद 159 :- राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 163 :- राज्यपाल को सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
अनुच्छेद 164 :- मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
अनुच्छेद 165 :- राज्य का महाधिवक्ता
अनुच्छेद 166 :- राज्य सरकार का संचालन
अनुच्छेद 167 :- राज्यपाल को जानकारी देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य
अनुच्छेद 168 :- राज्य के विधान मंडल का गठन
अनुच्छेद 170 :- विधानसभाओं की संरचना
अनुच्छेद 171 :- विधान परिषद की संरचना
अनुच्छेद 172 :- राज्यों के विधानमंडल कि अवधी
अनुच्छेद 176 :- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
अनुच्छेद 177 सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार
अनुच्छेद 178 :- विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
अनुच्छेद 179 :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना या
पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 180 :- अध्यक्ष के पदों के कार्य व शक्ति

अनुच्छेद 181 :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई
संकल्प पारित होने पर उसका पिठासिन ना होना
अनुच्छेद 182 :- विधान परिषद का सभापति और उपसभापति
अनुच्छेद 183 :- सभापति और उपासभापति का पद रिक्त होना
पद त्याग या पद से हटाया जाना
अनुच्छेद 184 :- सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन व शक्ति
अनुच्छेद 185 :- संभापति उपसभापति को पद से हटाए जाने का
संकल्प विचाराधीन होने पर उसका पीठासीन ना होना
अनुच्छेद 186 :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष सभापति और उपसभापति
के वेतन और भत्ते
अनुच्छेद 187 :- राज्य के विधान मंडल का सविचाल.
अनुच्छेद 188 :- सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 189 :- सदनों में मतदान रिक्तियां होते हुए भी साधनों का कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
अनुच्छेद 199 :- धन विदेश की परिभाषा
अनुच्छेद 200 :- विधायकों पर अनुमति
अनुच्छेद 202 :- वार्षिक वित्तीय विवरण
अनुच्छेद 213 :- विध
ानमंडल में अध्यादेश सत्यापित करने के
राज्यपाल की शक्ति
अनुच्छेद 214 :- राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 215 :- उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
अनुच्छेद 216 :- उच्च न्यायालय का गठन
अनुच्छेद 217 :- उच्च न्यायालय न्यायाधीश की नियुक्ति
पद्धति शर्तें
अनुच्छेद 221 :- न्यायाधीशों का वेतन

अनुच्छेद 222 :- एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में
न्यायाधीशों का अंतरण
अनुच्छेद 223 :- कार्यकारी मुख्य न्याय मूर्ति के नियुक्ति
अनुच्छेद 224 :- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति
अनुच्छेद 226 :- कुछ रिट निकालने के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति
अनुच्छेद 231 :- दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना
अनुच्छेद 2

33 :- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

अनुच्छेद 241 :- संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च-न्यायालय

अनुच्छेद 243 :- पंचायत नगर पालिकाएं एवं सहकारी समितियां
अनुच्छेद 244 :- अनुसूचित क्षेत्रो व जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
अनुच्छेद 248 :- अवशिष्ट विधाई शक्तियां
अनुच्छेद 252 :- दो या अधिक राज्य के लिए सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 254 :- संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए गए विधियों में असंगति
अनुच्छेद 256 :- राज्यों की और संघ की बाध्यता
अनुच्छेद 257 :- कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण
अनुच्छेद 262 :- अंतर्राज्यक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी
विवादों का न्याय निर्णय
अनुच्छेद 263 :- अंतर्राज्यीय विकास परिषद का गठन
अनुच्छेद 266 :- संचित निधी
अनुच्छेद 267 :- आकस्मिकता निधि
अनुच्छेद 269 :- संघ द्वारा उद्ग्रहित और संग्रहित किंतु राज्यों
को सौपे जाने वाले कर
अनुच्छेद 270 :- संघ द्वारा इकट्ठे किए कर संघ और राज्यों के
बीच वितरित किए जाने वाले कर
अनुच्छेद 280 :- वित्त आयोग
अनुच्छेद 281 :- वित्त आयोग की सिफारिशे
अनुच्छेद 292 :- भारत सरकार द्वारा उधार लेना
अनुच्छेद 293 :- राज्य द्वारा उधार लेना
&अनुच्छेद 300 क :- संपत्ति का अधिकार

अनुच्छेद 301 :- व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 309 :- राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों
अनुच्छेद 310 :- संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि
अनुच्छेद 313 :- संक्रमण कालीन उपबंध
अनुच्छेद 315 :- संघ राज्य के लिए लोक सेवा आयोग
अनुच्छेद 316 :- सदस्यों की नियुक्ति एवं पदावधि
अनुच्छेद 317 :- लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया
जाना या निलंबित किया जाना
अनुच्छेद 320 :- लोकसेवा आयोग के कृत्य
अनुच्छेद 323 क :- प्रशासनिक अधिकरण
अनुच्छेद 323 ख :- अन्य विषयों के लिए अधिकरण
अनुच्छेद 324 :- निर्वाचनो के अधिक्षण निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
अनुच्छेद 329 :- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय के
हस्तक्षेप का वर्णन
अनुछेद 330 :- लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये स्थानो का आरणण
अनुच्छेद 331 :- लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का
प्रतिनिधित्व
अनुच्छेद 332 :- राज्य के विधान सभा में अनुसूचित जाति और
अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 333 :- राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय
समुदाय का प्रतिनिधित्व
अनुच्छेद 343 :- संघ की परिभाषा
अनुच्छेद 344 :- राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
अनुच्छेद 350 क :- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की
सुविधाएं
अनुच्छेद 351 :- हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश
अनुच्छेद 352 :- आपात की उदघोषणा का प्रभाव
अनुछेद 356 :- राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की
दशा में उपबंध
अनुच्छेद 360 :- वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 368 :- सविधान का संशोधन करने की संसद की
शक्ति और उसकी प्रक्रिया
अनुच्छेद 377 :- भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के बारे में
उपबंध
अनुच्छेद 378 :- लोक सेवा आयोग के बारे




Sunday, October 28, 2018

Top 30 Motivational quotes in hindi


 Motivational Quotes in hindi

Quote 1. जब लोग आपको Copy करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में Success हो रहे हों.

Quote 2. कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे.


Quote 3. जिस व्यक्ति का लालच खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म.

Quote 4. यदि “Plan A” काम नही कर रहा, तो कोई बात नही 25 और Letters बचे हैं उन पर Try करों.

Quote 5. जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की.

Quote 6. भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.

Quote 7. अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं.

Quote 8. कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता.

Quote 9. महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.

Quote 10. जिस चीज में आपका Interest हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के 1 ही क्यों न बजे हो.

Quote 11. अगर आप चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये.

Quote 12. सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.


Quote 13. जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं.

Quote 14. जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

Quote 15. यदि लोग आपके लक्ष्य पर हंस नहीं रहे हैं तो समझो आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.

Quote 16. विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं.

Quote 17. सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था.

Quote 18. हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का छिप जाता हैं तो किसी का छप जाता हैं.

Quote 19. दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें.

Quote 20. अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं.

Quote 21. पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं.

Quote 22. जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के फैन मत बनो.


Quote 23. जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.

Quote 24. आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.

Quote 25. कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.

Quote 26. इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.

Quote 27. जिस दिन आपके Sign #Autograph में बदल जाएंगे, उस दिन आप बड़े आदमी बन जाओगें.

Quote 28. काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे.

Quote 29. तब तक पैसे कमाओ जब तक तुम्हारा बैंक बैलेंस तुम्हारे फोन नंबर की तरह न दिखने लगें.

Quote 30. अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता हैं. ये हैं मुस्कान की ताकत.